शनिवार 18 अक्तूबर 2025 - 14:35
तहक़ीक के बगैर तालीम और तब्लीग प्रभावी नहीं/इज्तिहाद को नजरअंदाज न किया जाएः आयतुल्लाह आराफ़ी

हौज़ा / ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा है कि धार्मिक शिक्षा और प्रचार में वास्तविक सफलता तभी संभव है जब इसकी नींव मजबूत वैज्ञानिक और शोध सिद्धांतों पर हो, क्योंकि शोध के बिना न तो शिक्षा फलदायी बनती है और न ही प्रचार स्थायी प्रभाव छोड़ता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा है कि धार्मिक शिक्षा और प्रचार में वास्तविक सफलता तभी संभव है जब इसकी नींव मजबूत वैज्ञानिक और शोध सिद्धांतों पर हो क्योंकि शोध के बिना न तो शिक्षा फलदायी बनती है और न ही प्रचार स्थायी प्रभाव छोड़ता है।

पवित्र शहर क़ुम में हौज़ात ए इल्मिया के प्रबंधकों के तेरहवें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि धार्मिक मदरसों के विकास की निर्भरता शोध और अध्ययन पर है। मदरसों का कर्तव्य है कि वे ऐसे छात्र तैयार करें जो ज्ञान और समझ में अद्वितीय हों, बौद्धिक रूप से उम्मत का मार्गदर्शन कर सकें और आधुनिक युग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नए विचार और सिद्धांत प्रस्तुत कर सकें।

उन्होंने कहा कि हौज़ात ए इल्मिया की मूल जिम्मेदारियाँ दो हैं,पहली छात्रों की वैज्ञानिक, नैतिक और बौद्धिक शिक्षा, जिसके लिए शिक्षा, शोध और आत्मशुद्धि का आपसी संबंध आवश्यक है; और दूसरी नए विचारों और सिद्धांतों का सृजन, लेकिन शोध इन दोनों जिम्मेदारियों में केंद्रीय स्थान रखता है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने शोध विभाग के जिम्मेदारों को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी जिम्मेदारियों के दो पहलू हैं एक स्पष्ट, जैसे शोध केंद्रों की स्थापना, वैज्ञानिक प्रतियोगिताओं और पुस्तक मेलों का आयोजन; और दूसरी छिपी हुई लेकिन अधिक महत्वपूर्ण, यानी शैक्षिक प्रणाली में शोध को मूल दिशा बनाना। उनके अनुसार,हमें शिक्षण को शोध से जोड़ना होगा ताकि छात्र शोध-आधारित शिक्षा प्राप्त कर सकें।

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक और शोध विभाग को कभी-कभी नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि यही वह विभाग है जो सबसे अधिक प्रभाव डालने वाला है।यदि शिक्षा और प्रचार शोध से जुड़े न हों तो अपने लक्ष्यों तक पहुँचना संभव नहीं है।

उन्होंने इस्लामी क्रांति के रहबर की "धार्मिक मदरसों की अग्रणी रणनीति" की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस मार्गदर्शन में भी शोध को प्रमुख स्थान प्राप्त है क्योंकि ज्ञान-आधारित प्रचार ही स्थायी प्रभाव रखता है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस्लामी विज्ञानों के शोध में इज्तिहादी सोच को आधार बनाया जाए। हम यह नहीं कहते कि हर शोधकर्ता मुजतहिद हो, लेकिन यह आवश्यक है कि शोध में इज्तिहादी सोच काम करे ताकि हम अपनी धार्मिक विरासत से सही ढंग से लाभ उठा सकें।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने नई फ़िक़्ह, इस्लामी दर्शन और मानविकी व धार्मिक विज्ञानों में उभरते हुए नए विषयों जैसे अर्थव्यवस्था, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और चिकित्सा विज्ञान पर शोध को समय की महत्वपूर्ण आवश्यकता बताया। उन्होंने कहा कि मदरसों के जिम्मेदारों को चाहिए कि वे छात्रों का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन इन नए वैज्ञानिक क्षेत्रों में करें।

अंत में उन्होंने प्रतिभाशाली छात्रों की तलाश और उनके संरक्षण को एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बताते हुए कहा कि धार्मिक मदरसों में बौद्धिक और शोध संबंधी प्रगति इन्हीं विद्वान छात्रों के माध्यम से संभव है जो जुनून और गंभीरता के साथ ज्ञान और शोध के मार्ग में प्रयासरत हों।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha